उपलब्धियाँ

गाँव बाकरा दुबलधन से आये पंडित जैकल के करीब १७५ साल पहले आकर बसाया. गाँव बसने की जगह पंडित जैकल को रस्ते चलते एक बच्चा मिला वह उसे टोकरी मे सिर पर लेकर अपने गाँव की और चल दिए | बच्चे के पेशाब करने पर उनकी दाडी से पानी टपकने लगा इस पर अचंभित होकर टोकरा दूर जा गिरा| जिस वजह से बच्चे की मौत हो गयी| इस दुःख मे वह वहीँ पर बैठ गये| गाँव वालों के काफी समझाने पर भी वह वापिस नही आये और वहीँ पर अपना बसेरा डाल लिया, ढराना गाँव के दानी नामक व्यक्ति ने मित्र प्रेम मे उन्ही के साथ वहीँ पर अपना बसेरा डाल लिया | गाँव के नाम की बात पर जब उन्होंने विचार किया तो उन्हें अपने सामने एक बकरा टांग उठा कर चरता हुआ दिखाई दिया, उसे देख कर उन्होंने तय किया की गाँव का नाम बाकरा होना चाहिए|